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शब्द

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जब रूह को तोड़ के मेरी टुकरे यूँ हज़ार ले जाते हो, ऐ जालिम इन शब्दों को क्यों छोड़ जाते हो?? इन्हें भी जला दिया करो मेरी सांसो के साथ, कमसे कम तेरी याद को बयां करने का कोई जरिया तो न बचे.... तो फिर मैं शायद तेरी परछाई को किसी कोने में दिल के दफना सकूँ, इस नियत से नहीं की तुझे भुलाना है मुझे, बल्कि इस फितरत से की तुझे खुद का एक हिस्सा बनाना है तुझे.... तू तो मेरे शब्द मेरे होंठों में छोड़ जाती है, ये कह के ये मेरी निशानी हैं,इसे संझोते रहो, क्या बीतती है इस ASHK पे सोचा है? ये श्याही बनके तेरे नगमे ज़माने को सुनाता रहता है,आशिक की तरह.. डर डर के बहाता है ये वो बीते पलों की प्रवाह, कहीं कोई लहर इतनी न गहरी हो जाए, की तेरी कोई याद,तेरी शक्शियत की कोई परछाई, मुझसे पल भर को ही सही, पर जुदा न हो जाए.... तू जाती है तो मेरे शब्द क्यों नहीं ले जाती?? थक न जाये ये ASHK बहते बहते, तू इसे हमेशा के लिए क्यों नहीं सुला जाती... -Ashk