उसने लिखना छोड़ दिआ
उसने लिखना छोड़ दिया मैंने पुछा क्या हुआ तो वो थोड़ी देर तक ठहरा फिर जैसे कुछ गेहन सा सोच के बोला अब शब्द नहीं मिलते मै भी आज चर्चा के मूड में था तो मैंने भी कह दिआ शायद ये अच्छा ही है हो सकता है तेरा दर्द जो तू इतने दिनों से रह रह कर इन कहानियों में बहा रहा था अब खर्च हो चला हो शायद ये एक ख़ुशी का मौका हो एक नयी शुरुआत हो कुछ खुशनुमा लिखने की कोशिश कर उसके चेहरे पे एक अजीब सी कसक थी जैसे वो था यहाँ पर असल में कही और बैठा था किसी याद के आंगन में बतियाते हुए और मेरी बात सुनकर जैसे भागता हुआ आया हो उस गली से वो जब दौड़ने के बाद हाँफते हुए जो थकान चेहरे पे आती है उसी चेहरे के जैसे देख रहा था मुझे मैं जानता उसे कई सालों से हु अब तो मुझे लगा शायद मैंने कुछ ज्यादा ही कह दिआ थोड़ा भावुक सा तो है वो कहीं मैंने कोई दुखती सी नब्ज़ तो नहीं पकड़ ली उसकी वैसे काफी बेहूदा सा खौफ है ये मेरा , मैं सोचूं तो अब दोस्त होना भी क्या एक इम्तेहान बना लूँ कब क्या कहूं, कब चुप रहूं कब बस सुन लूँ, तो कब ये न कहूं इतने चेहरे तो एक दोस्ती में होते नहीं ये डर है मेरा, वो बोला जिसके चलते अब