इन्तहा की हद क्या है
एक गुलाब को अपने होंठो की नमी पे सम्हालो,
पलकों को एक दूजे से मिला दो,
सांसों को उसके खयालो में समां जाने दो...
अब उस पंखुड़ी को अपने से दूर करने की कोशिश करो,
पर आंख न खोलना,
होंठों लो एक दूजे से जुदा न करना,
सांसो की लए न बढ़ाना,
"वो लम्हा इन्तहा की हद है"
समंदर के किनारे बैठ के,
लहरों को पत्थर से टकराके भी गाते सुनो,
उस एक पल के लिए उसकी यादों को दूर जाने दो,
फिर जब वो लहर समंदर में कही खोने वाली हो,
उस लम्हा, उसका चेहरा आँखों में उतारो,
"वो पल इन्तहा की हद है"
एक शायर की शायरी पढो,
और फिर उसके शब्दों की गहराई उसी की जुबानी सुनो,
जिन शब्दों में उसकी रुदाली
उसकी आँखों में झलक आये,
उन शब्दों में अपनी ज़िन्दगी के किसी पल को रख दो
फिर उस पल की बेचैनी को जियो,
"ये इन्तहा की हद है"
किसी गवैये को वो गीत गाने को कहो,
जिससे वो अपने रूठे महबूब को मनाता हो,
फिर उस गीत में उन पंक्तियों में
जहाँ उसने तारीफ की हो उनकी अदा की,
उस लम्हे में उनकी अदा को यद् करो,
"वो लम्हा इन्तहा की हद है"
एक सुबह सूरज के साथ उठो,
ठंडी हवा को सीने से लगाओ
खूब हसो, खूब खिलखिलाओ,
दिन भर हर किसी का दिल जीत जाओ,
और रात को इतना थक जाओ की जब सोने औ,
तो किसी ऐसे की चाहत पो,
जिसके सामने मुखौटा न लगाओ,
जब उसे न पाओ,
"वो आँखों की नमी इन्तहा की हद है"
बचपन का सबसे पसंदीदा खेल
एक दिन बगीचे में बच्चो के साथ खेल आओ,
कुछ पल की ख़ुशी उनसे हार के पाओ,
फिर जब ज़िन्दगी की दौड़ में शामिल हो तो,
इन पलों को यद् करो,
"वो यादें इन्तहा की हद है"
हर लम्हा किसी को यादों में बसाओ,
फिर एकदम से यादों से रुसवा हो जाओ,
जो तलब सीने में जागेगी
फिर यादो में समाने की,
"वो इन्तहा की हद है"
मैं और क्या समझाउं इन्तहा की हद तुम्हे,
कभी किसी को अपना मान लो,
उस अपने पे अपनी हर ख़ुशी कुर्बान कर दो,
फिर जब वो मुस्कुराये,
तो दूर से उसकी हसी को देखो,
पर पास न जा पाओ,
किसी से सची मोहब्बत कर जाओ,
"वो इबादत इन्तहा की हद है"
-Ashk
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